हौसलों से ही उडान होती है दोस्त ..तुम्हारी कविता के भाव वर्तमान से असंतुष्ट नज़र आरहे हैं ..खुद को कैद परिंदा क्यों मान बैठा तुम्हारा महान मन. तुम जैसे तेजस्वी कवी मन को मार लेंगे तो देश का क्या होगा ?
अमितेश, आपकी अभिव्यक्ति में किंचित उदासी का भाव है, अतीत की याद और वर्तमान से असंतुष्टि, एक बेचैनी निहित है इन पंक्तियों, मन पखेरू माने ऊँची, उन्मुक्त उड़ान भरना चाहता है, फिर ठिठक जाता है....उसे खुला छोड़ दीजिये......फिर सारा आकाश आपका ही है......सुंदर कविता और मनोभावों को प्रस्तुत करने में आप सफल रहे, बधाई......
बहुत अच्छा भाई.....
ReplyDeletegood
ReplyDeleteबहुत सुंदर भाव और लय ! बधाई !
ReplyDeleteबहुत सुंदर भावो को समाहित किया है अजीम जी .... सुंदर लेखनार्थ बधाई हो
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना .....एक एक पंक्ति हर इंसान की हकीकत
ReplyDeletesunder abhivyakti......
ReplyDeleteहौसलों से ही उडान होती है दोस्त ..तुम्हारी कविता के भाव वर्तमान से असंतुष्ट नज़र आरहे हैं ..खुद को कैद परिंदा क्यों मान बैठा तुम्हारा महान मन. तुम जैसे तेजस्वी कवी मन को मार लेंगे तो देश का क्या होगा ?
ReplyDeleteअमितेश, आपकी अभिव्यक्ति में किंचित उदासी का भाव है, अतीत की याद और वर्तमान से असंतुष्टि, एक बेचैनी निहित है इन पंक्तियों, मन पखेरू माने ऊँची, उन्मुक्त उड़ान भरना चाहता है, फिर ठिठक जाता है....उसे खुला छोड़ दीजिये......फिर सारा आकाश आपका ही है......सुंदर कविता और मनोभावों को प्रस्तुत करने में आप सफल रहे, बधाई......
ReplyDeleteखिन्न मन का भावपूर्ण एवं सहज गीतात्मक उच्छलन...! एक ऐसी छलकन जो ‘कारिन्दा...परिन्दा’ जैसी रूपकाभा लेकर काग़ज़ पर पसर गयी... बधाई!
ReplyDeleteएक विनम्र सुझाव:
‘बस वो एक कारिन्दा है’............. में ‘एक’ की जगह ‘इक’ लिखने से मुखड़े की लय सही हो जायेगी।
मन में कैद किये भावों को सुंदरता से पिरोया है|
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