Thursday 7 June 2012

जो भी मुझ में जिंदा है.........


10 comments:

  1. बहुत अच्छा भाई.....

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  2. बहुत सुंदर भाव और लय ! बधाई !

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  3. बहुत सुंदर भावो को समाहित किया है अजीम जी .... सुंदर लेखनार्थ बधाई हो

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  4. बहुत सुन्दर रचना .....एक एक पंक्ति हर इंसान की हकीकत

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  5. हौसलों से ही उडान होती है दोस्त ..तुम्हारी कविता के भाव वर्तमान से असंतुष्ट नज़र आरहे हैं ..खुद को कैद परिंदा क्यों मान बैठा तुम्हारा महान मन. तुम जैसे तेजस्वी कवी मन को मार लेंगे तो देश का क्या होगा ?

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  6. अमितेश, आपकी अभिव्यक्ति में किंचित उदासी का भाव है, अतीत की याद और वर्तमान से असंतुष्टि, एक बेचैनी निहित है इन पंक्तियों, मन पखेरू माने ऊँची, उन्मुक्त उड़ान भरना चाहता है, फिर ठिठक जाता है....उसे खुला छोड़ दीजिये......फिर सारा आकाश आपका ही है......सुंदर कविता और मनोभावों को प्रस्तुत करने में आप सफल रहे, बधाई......

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  7. खिन्न मन का भावपूर्ण एवं सहज गीतात्मक उच्छलन...! एक ऐसी छलकन जो ‘कारिन्दा...परिन्दा’ जैसी रूपकाभा लेकर काग़ज़ पर पसर गयी... बधाई!


    एक विनम्र सुझाव:
    ‘बस वो एक कारिन्दा है’............. में ‘एक’ की जगह ‘इक’ लिखने से मुखड़े की लय सही हो जायेगी।

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  8. मन में कैद किये भावों को सुंदरता से पिरोया है|

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